टूटी हुई दीवार का साया तो नहीं हूँ मैं तेरा ही भूला हुआ वादा तो नहीं हूँ गुज़रा था दबे पाँव जहाँ से तू शब-ए-माह मैं ही वो तिरा बाग़-ए-तमन्ना तो नहीं हूँ जिस नक़्श पे चलने की क़सम खाती है दुनिया मैं ही वो तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा तो नहीं हूँ औरों से मिरा नाम उलझता है तो उलझे शिकवा तुझे क्यूँ हो कि मैं तेरा तो नहीं हूँ क्यूँ ख़ुद को न चाहूँ कि तिरा दिल तो नहीं मैं क्यूँ ख़ुद को भुला दूँ कि ज़माना तो नहीं हूँ तू मेरी ज़रूरत मिरी आदत तो नहीं है महताब-ए-ज़मीं में तिरा हाला तो नहीं हूँ बाग़ों से उड़ाई हुई ख़ुश्बू ही सही तू मैं निकहत-ए-बे-बाक का पर्दा तो नहीं हूँ मैं अक्स-ए-गुरेज़ाँ तो नहीं अपनी अना का मैं तेरा ही टूटा हुआ रिश्ता तो नहीं हूँ मैं आख़िरी जादू तो नहीं साहिर-ए-शब का सहमा हुआ मैं सुब्ह का तारा तो नहीं हूँ