क्या ग़रज़ लाख ख़ुदाई में हों दौलत वाले उन का बंदा हूँ जो बंदे हैं मोहब्बत वाले चाहें गर चारा जराहत का मोहब्बत वाले बेचें अल्मास ओ नमक संग-ए-जराहत वाले गए जन्नत में अगर सोज़-ए-मोहब्बत वाले तो ये जानो रहे दोज़ख़ ही में जन्नत वाले साक़िया हों जो सुबूही की न आदत वाले सुब्ह-ए-महशर को भी उट्ठें न तिरे मतवाले दुख़्तर-ए-रज़ को नहीं छेड़ते हैं मतवाले हज़र उस फ़ाहिशा से करते हैं हुरमत वाले रहे जूँ शीशा-ए-साअ'त वो मुकद्दर दोनों कभी मिल भी गए दो दिल जो कुदूरत वाले किस मरज़ की हैं दवा ये लब-ए-जाँ-बख़्श तिरे जाँ-ब-लब हैं तिरे आज़ार-ए-मोहब्बत वाले हिर्स के फैलते हैं पाँव ब-क़द्र-ए-वुसअत तंग ही रहते हैं दुनिया में फ़राग़त वाले हाए रे हसरत-ए-दीदार मिरी हाए को भी लिखते हैं हा-ए-दो-चश्मी से किताबत वाले नहीं जुज़ शम्अ' मुजाविर मिरी बालीन-ए-मज़ार नहीं जुज़ कसरत-ए-परवाना ज़ियारत वाले न शिकायत है करम की न सितम की ख़्वाहिश देख तो हम भी हैं क्या सब्र ओ क़नाअ'त वाले क्या तमाशा है कि मिस्ल-ए-मह-ए-नौ अपना फ़रोग़ जानते अपनी हिक़ारत को हैं शोहरत वाले दिल से कुछ कहता हूँ मैं मुझ से है कुछ कहता दिल दोनों इक हाल में हैं रंज ओ मुसीबत वाले तू गर आ जाए तो ऐ दर्द-ए-मोहब्बत की दवा मिरे हमदर्द हों बेदर्द फ़ज़ीहत वाले छोड़ देते हैं क़लम जूँ क़लम-ए-आतिश-बाज़ मिरी शरह-ए-तपिश-ए-दिल की किताबत वाले कभी अफ़्सोस है आता कभी रोना आता दिल-ए-बीमार के हैं दो ही अयादत वाले तू मिरे हाल से ग़ाफ़िल है पर ऐ ग़फ़लत-केश तेरे अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल नहीं ग़फ़लत वाले हम ने देखा है जो उस बुत में नहीं कह सकते कि मुबादा कहीं सुन पाएँ शरीअ'त वाले नाज़ है गुल को नज़ाकत पे चमन में ऐ 'ज़ौक़' उस ने देखे ही नहीं नाज़-ओ-नज़ाकत वाले