टूटी हुई कश्ती पे बिफरते हुए गिर्दाब अल्लाह निगहबान तिरा ऐ दिल-ए-बेताब जो मौज-ए-हवादिस के थपेड़ों में पला हो मोती वही होता है जहाँ में दुर-ए-नायाब फिर आज दुआओं में घटा माँग रहा है सूखे हुए तालाब में सहमा हुआ सुरख़ाब ऐ ज़ोर-ए-अली फ़क़्र-ए-अबूज़र से बरोमंद बे-ज़ोर तिरे सामने हर रुस्तम-ओ-सुहराब तिरयाक के कूज़े में भरा ज़हर-ए-हलाहिल अल्लाह-रे मय-ख़ाना-ए-मग़रिब की मय-ए-नाब दिल तोड़ने वाले तुझे मालूम नहीं है सूखी हुई आँखों से उबल पड़ते हैं सैलाब नग़्मात से बेज़ार मुग़न्नी से गुरेज़ाँ साज़ों को तरस जाएँ न टूटे हुए मिज़राब तू अपनी हक़ीक़त का शनासा नहीं वर्ना दरिया तिरे दामन में है ऐ माही-ए-बे-आब 'बज़्मी' ये जफ़ाओं का सुलगता हुआ सहरा अल्लाह रखे तुझ को ज़माने में ज़फ़रयाब