उड़ गई चेहरे की रंगत ज़र्द चेहरा हो गया किस लिए कुछ दिन से गुम-सुम हो तुम्हें क्या हो गया टूट कर बिखरे धनक के रंग आँखों में मिरी उस ने जब अंगड़ाई ली मौसम सुहाना हो गया मोहतरम था इश्क़ जब तक ख़ानक़ाहों में रहा बारगाह-ए-हुस्न में आया तो रुस्वा हो गया शो'बदा-बाज़ी ज़ियादा देर तक चलती नहीं जो तमाशा करने आया ख़ुद तमाशा हो गया इस्तक़ामत ने लिया जिस की चटानों से ख़िराज टूट कर इस तरह बिखरा रेज़ा-रेज़ा हो गया चढ़ के आया था बड़ी शिद्दत से दरिया-ए-हवस जब मेरी तौबा से टकराया तो सहरा हो गया फूल सा चेहरा बस इक शब ख़्वाब में आया मिरे और फिर मेरा मिरी नींदों से झगड़ा हो गया एक सज्दा यूँ अदा हो ऐ मिरे परवरदिगार तू कहे उठ जा मिरे बंदे कि सज्दा हो गया रात-भर इक दूसरे से गुफ़्तुगू की 'अल्तमश' और फिर बातों ही बातों में सवेरा हो गया