उड़ा कर अम्न के परचम सितम वालों की तदबीरें ख़िरद के पाँव में डाली गईं सोने की ज़ंजीरें जहान-ए-शोर-ओ-शर का नाम ही है गरचे आज़ादी क़फ़स ही इस से अच्छा था बहुत अच्छी थीं ज़ंजीरें सुकून-ओ-अम्न के ख़ूगर बने हैं ख़ार राहों के अंधेरे रक़्स-फ़रमा हैं उजालों की हैं तासीरें समर ये टूट जाएगा ख़िरद के पासबानों का जुनूँ के अज़्म की जिस दम मचल उट्ठेंगी तस्वीरें निज़ाम-ए-ज़िंदगी डर है कहीं बरहम न हो जाए यही है गरचे ऐ 'जाँबाज़' आज़ादी की तासीरें