उदास बाम है दर काटने को आता है तिरे बग़ैर ये घर काटने को आता है ख़याल-ए-मौसम-ए-गुल भी नहीं सितमगर को बहार में भी शजर काटने को आता है फ़क़ीह-ए-शहर से इंसाफ़ कौन माँगेगा फ़क़ीह-ए-शहर तो सर काटने को आता है इसी लिए तो किसानों ने खेत छोड़ दिए कि कोई और समर काटने को आता है तिरे ख़याल का आहू कहीं भी दिन में रहे मगर वो रात इधर काटने को आता है कहा तो था कि हमें इस क़दर भी ढील न दे अब उड़ रहे हैं तो पर काटने को आता है ये काम करते थे पहले सगान-ए-आवारा बशर को आज बशर काटने का आता है ये उस की राह नहीं है मगर यूँही 'बाक़ी' वो मेरे साथ सफ़र काटने को आता है