उदास काग़ज़ी मौसम में रंग ओ बू रख दे हर एक फूल के लब पर मिरा लहू रख दे ज़बान-ए-गुल से चटानें तराशने वाले निगार ओ नक़्श में आसाइश-ए-नुमू रख दे सुना है अहल-ए-ख़िरद फिर चमन सजाएँगे जुनूँ भी जेब ओ गरेबाँ प-ए-रफ़ू रख दे शफ़क़ है फूल है दीपक है चाँद भी है मगर उन्हीं के साथ कहीं साग़र ओ सुबू रख दे चला है जानिब-ए-मय-ख़ाना आज फिर वाइज़ कहीं न जाम पे लब अपने बे-वज़ू रख दे तमाम शहर को अपनी तरफ़ झुका लूँगा ग़म-ए-हबीब मिरे सर पे हाथ तू रख दे गिराँ लगे है जो एहसान दस्त-ए-क़ातिल का उठ और तेग़ के लब पर रग-ए-गुलू रख दे ख़ुदा करे मिरा मुंसिफ़ सज़ा सुनाने पर मिरा ही सर मिरे क़ातिल के रू-ब-रू रख दे समुंदरों ने बुलाया है तुझ को ऐ 'बेकल' तू अपनी प्यास की सहरा में आबरू रख दे