उदास कमरे के कोने कोने में जैसे ग़ुस्सा पड़ा हुआ है ये कप में चाय नहीं है परसों से एक लम्हा पड़ा हुआ है हमारी बस्ती के सारे बासी नए सफ़र पर निकल पड़े हैं पुरानी चौपाल में पुरानी परी का क़िस्सा पड़ा हुआ है अधूरी उल्फ़त का राज़ है ये कि सब अधूरे ही रह गए हैं ये ज़र्द पत्तों में आधा सिगरेट नहीं है मिस्रा पड़ा हुआ है बिछड़ने वाले की चारपाई से मेरी नज़रें लिपट गई हैं किसे ख़बर है कि चारपाई पे एक सदमा पड़ा हुआ है तुम्हारी जानिब मैं चलते चलते अब इस दोराहे पे आ खड़ा हूँ जहाँ पे आने न आने के बीच एक अर्सा पड़ा हुआ है