उदासियों के सिवा दिल की ज़िंदगी क्या है कोई बताए कि ख़्वाबों की बरहमी क्या है कभी चमन से जो गुज़रे चमन से ख़ुद पूछे सबा मिज़ाज-ए-चमन हम से पूछती क्या है ये तीरगी-ए-मुसलसल हज़ार बार क़ुबूल मगर ये दौर चराग़ों की रौशनी क्या है ये अहल-ए-दिल कि उड़ाते हैं मेरे ग़म का मज़ाक़ ये बे-हिसी जो नहीं है तो बे-हिसी क्या है न पूछ मुझ से जो कार-ए-सवाब में है मज़ा ये पूछ मुझ से गुनाहों में दिलकशी क्या है मशाम-ए-जाँ न मोअत्तर हो जिस से वो गुल क्या जो नश्शा ला न सके वो शराब ही क्या है नज़र से दूर है 'जज़्बी' सवाद-ए-मंज़िल तक न जाने ज़ौक़-ए-तलब में मिरे कमी क्या है