उजाड़ती हुई तक़दीर से बँधा हुआ है ये दिल है और ग़म-ए-ता'मीर से बँधा हुआ है वो क्या है जो मुझे तेरे क़रीब रखती है दरख़्त कौन सी ज़ंजीर से बँधा हुआ है ख़ुदा ज़रूर करेगा मिरी तरफ़-दारी मुसव्विर अपनी तसावीर से बँधा हुआ है सुख़न-वरी तो घटाती है सिर्फ़ दिल का ग़ुबार सुकून शेर की तश्हीर से बँधा हुआ है मैं अपने आप से कैसे अलग करूँ उस को ये नक़्श-ए-पा ही तो रहगीर से बँधा हुआ है पराए मिसरे को मुर्दार मानता हूँ मैं मिरा शिकार मिरे तीर से बँधा हुआ है ये होंट बोसा लिए बिन नहीं रहेंगे कभी क़लम कोई भी हो तहरीर से बँधा हुआ है बहूर हज़रत-ए-ग़ालिब से ले के आए हैं ख़याल मीर तक़ी 'मीर' से बँधा हुआ है हमें न नींद की क़िल्लत न ख़्वाब की 'हमज़ा' हमारा मसअला ता'बीर से बँधा हुआ है