उस्लूब यक़ीनन है जुदागाना ख़ुदा का पढ़ता हूँ तुझे जान के अफ़्साना ख़ुदा का तालिब की तलब वुसअ'त-ए-दामन से जुड़ी है हम रिंद समझ सकते हैं पैमाना ख़ुदा का दिन रात टपकते हैं मिरी आँख से आँसू ख़ाली नहीं होता कभी मय-ख़ाना ख़ुदा का आया है कोई शख़्स दिल-ए-ज़ार में रहने देखा है किसी ने कभी वीराना ख़ुदा का क्या शैख़ को आदाब-ए-फ़ज़ीलत नहीं आते खींचे है कभी दस्त कभी शाना ख़ुदा का बोसा भी उसे दूँगा जो मेआ'र पे उतरे हर आग में जलता नहीं परवाना ख़ुदा का जाते हैं तबीअत की रवानी जहाँ ले जाए मख़्सूस पता है कोई मेरा न ख़ुदा का बे-रौनक़ी ख़ालिक़ को भी अच्छी नहीं लगती रंगों से भरा रहता है बुत-ख़ाना ख़ुदा का