उजागर हो गए रुख़ ज़िंदगी के वगर्ना थे इरादे ख़ुद-कुशी के मिले हैं उन से मौक़े दोस्ती के बड़े मम्नून हैं हम ज़िंदगी के ये मैदान-ए-वफ़ा ही है वो मैदाँ जहाँ खुलते हैं जौहर आदमी के करम ऐ सुख़नी-ए-राह-ए-मोहब्बत क़दम थर्रा गए हैं ज़िंदगी के क़दम चूमेगी बढ़ कर कामयाबी इरादे कीजिए मंज़िल-रसी के निगाह-ए-नाज़ ने करवट जो बदली बदल कर रह गए रुख़ ज़िंदगी के रह-ए-इंसानियत में इत्तीफ़ाक़न निकल आए हैं गोशे कजरवी के हलाकत थी जहाँ हम-रंग-ए-मंज़िल कुछ ऐसे मोड़ आए ज़िंदगी के ब-ज़ाहिर देखने में दोस्ती है दिलों में फ़ैसले हैं दुश्मनी के सलामत हैं अगर मेरी वफ़ाएँ बदल जाएँगे पहलू बे-रुख़ी के तमव्वुल की इनायत पर न जाना उलझ जाते हैं दामन बे-कसी के हुई है 'मौज' मुश्किल ज़िंदगानी सिले ये पा रहा हूँ दोस्ती के