मंज़िलें क्या बताएँ मैं क्या हूँ ज़िंदगी का उदास रस्ता हूँ तू ख़रोश-ए-तलातुम-ए-दरिया मैं सुकूत-ए-सराब-ए-सहरा हूँ काम आई न कुछ शनासाई शहर की भीड़ में अकेला हूँ मैं तिरी जुस्तुजू के सहरा में रक़्स करता हुआ बगूला हूँ ख़ार-ओ-ख़स ही सही मगर यारो मैं भी सहन-ए-चमन का हिस्सा हूँ चश्म-ए-इबरत से देखिए मुझ को अपनी तहज़ीब का जनाज़ा हूँ आप अपनी सुनाइए 'मासूम' मेरी क्या पूछते हैं अच्छा हूँ