उजाला कर के ज़ुल्मत में घिरा हूँ चराग़-ए-रहगुज़र था बुझ गया हूँ तिरी तस्वीर कैसे बन सकेगी हर इक सादा वरक़ को देखता हूँ मुझे तूफ़ान से शिकवा नहीं है हलाक-ए-बे-रुख़ी-ए-नाख़ुदा हूँ तिरे तीरों का अंदाज़ा करूँगा अभी तो ज़ख़्म दिल के गुन गा रहा हूँ तुम्हें सूरज नज़र आएँगे अपने मैं आईना हूँ और टूटा हुआ हूँ सबा आहिस्ता आहिस्ता उड़ूँगा मैं दस्त-ए-नाज़ का रंग-ए-हिना हूँ