नफ़ी को कर्या-ए-इस्बात से निकालता हूँ मैं अपनी ज़ात तिरी ज़ात से निकालता हूँ कशीद करता हूँ मैं दिन की आग से ठंडक और अपनी धूप कहीं रात से निकालता हूँ तू एक रुख़ पे है महव-ए-कलाम लेकिन मैं कई मआ'नी तिरी बात से निकालता हूँ दुआ के हाले बना कर तिरे जमाल के गिर्द तुझे मैं गर्दिश-ओ-आफ़ात से निकालता हूँ मिरा कमाल मैं अपनी बुलंदियाँ 'शहज़ाद' हक़ीर-ओ-पस्त मक़ामात से निकालता हूँ