उजाले हो गए ज़िंदा मिरी ग़मगीन आँखों में

उजाले हो गए ज़िंदा मिरी ग़मगीन आँखों में
तुम आए तो सदा को बस गई तस्कीन आँखों में

लगाया काजल-ए-इश्क़ उस ने जब शौक़ीन आँखों में
सिमट आईं सभी रंगीनियाँ रंगीन आँखों में

महक उठती हैं जिस्म-ओ-जाँ की अफ़्सुर्दा फ़ज़ाएँ भी
जब आता है पिरो कर वो गुल-ए-नसरीन आँखों में

जो इन में डूब जाता है उभर कर फिर नहीं आता
समुंदर कर रखे हैं बंद क्या नमकीन आँखों में

बदन सोने का रखता है वो दिलबर देखने उस को
लगा कर सुर्मा-ए-ज़र्रीं चलो मिस्कीन आँखों में

उड़ानें भरने लगती हैं ख़यालों की अबाबीलें
जब आँखें डालता हूँ मैं तिरी शाहीन आँखों में

कई दिल फेंक दिल के आबगीने तोड़ कर भागे
क़यामत जब बपा होने लगी शौक़ीन आँखों में

हमारे जज़्बा-ए-दिल को सराहो ऐ क़लम-कारो
फ़साने कर दिए हम ने रक़म दो तीन आँखों में

लहद ऐसी किसी ने भी न देखी होगी ऐ 'शीबान'
हज़ारों हसरतों की हो गई तदफ़ीन आँखों में


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