उलट गया है हर इक सिलसिला निशाने पर चराग़ घात में हैं और हवा निशाने पर ग़ज़ल में उस को सितम-गर कहा तो रूठ गया चलो ये हर्फ़-ए-मलामत लगा निशाने पर मैं अपने सीने से शर्मिंदा होने वाला था कि आ लगा कोई तीर-ए-जफ़ा निशाने पर ख़ुदा से आख़िरी रिश्ता भी कट न जाए कहीं कि अब के है मिरा दस्त-ए-दुआ निशाने पर वो शोला अपनी ही तेज़ी में जल बुझा वर्ना रखा था ख़ेमा-ए-सब्र-ओ-रज़ा निशाने पर मैं इंतिज़ार में हूँ कौन उसे शिकार करे बहुत दिनों से है मेरी नवा निशाने पर