उल्फ़त के इम्तिहाँ में अग़्यार फ़ेल निकले थे पास एक हम ही जो जाँ पे खेल निकले तेग़-ओ-सिनाँ को रख दो आँखें लड़ाओ हम से अच्छी है वो लड़ाई जिस में कि मेल निकले देखा जो नूर उस का तो खुल गई हैं आँखें दुनिया-ओ-दीं के झगड़े बच्चों का खेल निकले उम्मीद नेकियों की रक्खो न तुम बुरों से मुमकिन नहीं खली से हरगिज़ जो तेल निकले कब कोहकन से उट्ठा कोह-ए-गिराँ से उल्फ़त इन सख़्तियों को 'कैफ़ी' कुछ हम ही झेल निकले