उल्फ़त में कोई बात छुपाई नहीं जाती दीवार-ए-अना बीच में लाई नहीं जाती है दिल मिरा आज़ुर्दा मगर लब पे हँसी है ख़ूबी ये हर इंसान में पाई नहीं जाती हम ही चलो झुक जाते हैं अब सामने उन के उन से तो ये दीवार गिराई नहीं जाती ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा पाएँगे कब तक मुंसिफ़ के यहाँ मेरी दुहाई नहीं जाती ऐ काश कोई हो जो मिरी वहशतें बाँटे अब दिल की ख़लिश मुझ से दबाई नहीं जाती 'अज़्का' चलो अब कूच करें शहर से उन के अब और हज़ीमत ये उठाई नहीं जाती