उल्फ़त-ए-शीरीं को भारी सिल समझ सहल को ऐ कोहकन मुश्किल समझ गर्द-बाद-ए-दश्त ऐ मजनूँ न हो तिल को लैला चश्म को महमिल समझ जान नब्ज़-ए-राह दश्त-ए-नीस्ती तेग़-ए-अबरू का मुझे बिस्मिल समझ दिल को बैतुल्लाह कहता है जहाँ इस को ऐ बुत मंज़िलत मंज़िल समझ है जो शब-बेदार तेरी याद में उस फ़रामुश-कार को ग़ाफ़िल समझ ख़ून-ए-दिल है सुर्ख़-रूई का निशाँ मुझ को बिस्मिल अपना ऐ क़ातिल समझ वो निगाह-ए-गर्म है बर्क़ ऐ 'वक़ार' ख़िर्मन-ए-हस्ती को बे-हासिल समझ