उल्फ़तों के साग़र में साज़िशें मिलाते हैं दोस्ती के पर्दे में दुश्मनी निभाते हैं ख़ाक कर के बैठे हैं आशियाँ हमीं अपना बिजलियाँ दिखा कर यूँ आप क्या डराते हैं शाम तेरे माथे पे रात यूँ इबादत है जुगनू भी चमकते हैं तारे झिलमिलाते हैं कोई जाने वाले को किस तरह ये समझाए वापसी में दिन इतने आप क्यों लगाते हैं शोर सुन के बारिश का दिल मचल सा जाता है भीगे भीगे फूलों से हम लजा से जाते हैं फ़िक्र भी है जज़्बा भी रंज भी ख़ुशी भी है शाइ'री नहीं हम तो हाल-ए-दिल सुनाते हैं मुश्किलों से सीखा है हम ने ये हुनर 'अम्बर' रास्ते जुदा अपने किस तरह बनाते हैं