उम्मीद के दिए की मुख़ालिफ़ हवा भी है लड़ने का आँधियों से मगर हौसला भी है जाने को तेरे शहर से तय्यार हैं मगर हम जा नहीं सकेंगे हमें ये पता भी है हम ने भी ज़ुल्मतों को मिटाया है अपने तौर सूरज के साथ साथ हमारा दिया भी है कोई तो है जो ख़ाना-ए-हस्ती में है मुक़ीम आवाज़ में हमारी वही बोलता भी है उम्मीद-ए-सुब्ह-ए-वस्ल का दम टूटने लगा कुछ कह शब-ए-फ़िराक़ तिरी इंतिहा भी है चलते चलो कि मंज़िलें आ कर मिलेंगी ख़ुद कुछ दर हुए हैं बंद तो इक दर खुला भी है हम ख़ुद-पसंदियों से निकलने लगे 'शजर' हम सोचने लगे हैं हमारा ख़ुदा भी है