उम्मीद ओ यास ने क्या क्या न गुल खिलाए हैं हम आबशार के बदले सराब लाए हैं हवा है गर्म उदासी का ज़र्द मंज़र है सभी दरख़्त हरी कोंपलें छुपाए हैं कटे हैं पाँव तो हाथों के बल चले उठ कर मिसाल-ए-मौज तिरे हम-कनार आए हैं जहाँ दिखाई न देता था एक टीला भी वहाँ से लोग उठा कर पहाड़ लाए हैं न एक बूँद इनायत न फूल भर ख़ुशबू ये किस दयार के बादल क़फ़स पे छाए हैं किसे हुनर का सिला चाहिए मगर कुछ लोग कहाँ कहाँ से न पत्थर उठा के लाए हैं अज़ल से हम को 'हसन' इंतिज़ार-ए-सब्ज़ा है जले हैं बाग़ तो पौदे नए लगाए हैं