उम्मीदों के पंछी के पर निकलेंगे मेरे बच्चे मुझ से बेहतर निकलेंगे लक्ष्मण-रेखा भी आख़िर क्या कर लेगी सारे रावण घर के अंदर निकलेंगे दिल तो स्टेशन के रस्ते चला गया पाँव हमारे थोड़ा सो कर निकलेंगे अच्छी अच्छी बातें तो सब करते हैं इन में से ही बद से बद-तर निकलेंगे बाज़ारों के दस्तूरों से वाक़िफ़ हैं सारे आँसू अंदर ढक कर निकलेंगे दिल वाले तो आहट पर चल देते हैं अक़्ल के बंदे सोच-समझ कर निकलेंगे