ज़ंजीर कट के क्या गिरी आधे सफ़र के बीच मैं सर पकड़ के बैठ गया रहगुज़र के बीच उतरा लहद में ख़्वाहिशों के साथ आदमी जैसे मुसाफ़िरों-भरी नाव भँवर के बीच दुश्मन से क्या बचाएँगी ये झाड़ियाँ मुझे बचते नहीं यहाँ तो पयम्बर शजर के बीच जितना उड़ा मैं उतना उलझता चला गया इक तार-ए-कम-नुमा था मिरे बाल-ओ-पर के बीच देते हो दस्तकें यहाँ सर फोड़ते हो वाँ कुछ फ़र्क़ तो रवा रखो दीवार-ओ-दर के बीच घर से चला तो घर की उदासी सिसक उठी मैं ने उसे भी रख लिया रख़्त-ए-सफ़र के बीच थकने के हम नहीं थे मगर अब के यूँ हुआ देता रहा फ़रेब सितारा सफ़र के बीच मेरा सभी के साथ रवय्या है एक सा 'शाहिद' मुझे तमीज़ नहीं ख़ैर ओ शर के बीच