उम्र का साथ निभाया है इस अंदाज़ के साथ जैसे करता हो वफ़ा कोई दग़ाबाज़ के साथ रात आराम से गुज़री हो कि दुश्वारी से हर सहर उड़ के चले हम नई परवाज़ के साथ हार के टूट के पहले ही क़दम पर गिर जाएँ हम अगर जोड़ लें अंजाम को आग़ाज़ के साथ मैं नहीं शाह-जहाँ पर ये तमन्ना है ज़रूर दफ़्न कर देना मुझे भी मिरी मुम्ताज़ के साथ नग़्मा-ओ-शेर के संगम पे नहा ले दुनिया मेरे अशआ'र सुने गर तिरी आवाज़ के साथ नाज़-बर्दारियाँ उस शोख़ की अल्लाह अल्लाह फूल क़दमों पे बिखरते हैं बड़े नाज़ के साथ नग़्मा दिलकश हो तो हर तरह असर करता है कभी आवाज़ के हमराह कभी साज़ के साथ