उम्र भर राज़ वो पूछा किए परवाने से ख़ुद-बख़ुद आज खुला हम पे वो जल जाने से गर पिलाना है तो नज़रों से पिला दे अपनी लुत्फ़ आता नहीं साक़ी मुझे पैमाने से राज़ ये है कि न हो राज़ से वाक़िफ़ कोई इश्क़ में हम जो फिरा करते हैं दीवाने से देख आते हैं हरम की भी हक़ीक़त 'फ़ाइक़' वर्ना नाकाम तो फिर आए हैं बुत-ख़ाने से