उम्र भर शौक़ का दफ़्तर लिक्खा लफ़्ज़ इक भी न मूअस्सर लिक्खा हम ने अशरफ़ को भी अहक़र लिक्खा आदमी था जिसे बंदर लिक्खा उम्र वैसे तो सफ़र में गुज़री लिखने बैठे तो इसे घर लिक्खा मौसम-ए-गुल की बशारत मालूम पढ़ लिया माथे पे पत्थर लिक्खा ख़ाक से ख़ाक हुई है पैदा लाख सहरा को समुंदर लिक्खा हम वो बीमार हैं अच्छे न हुए तुम अबस नुस्ख़ा मुकर्रर लिक्खा दास्ताँ फिर भी मुकम्मल न हुई सब का सब हम ने तो अज़बर लिक्खा