उन दिनों हम ने ख़यालों पे तसर्रुफ़ किया था शायरी तर्क नहीं की थी तवक़्क़ुफ़ किया था जाने क्या था वो तअ'ल्लुक़ कि जुदा होते हुए हम भी पछताए थे उस ने भी तअस्सुफ़ किया था कैसी हसरत से हमें देख रहा था वो ग़म पेश जब हम ने उसे दिल का तआ'रुफ़ किया था रात यादों ने कई पहर मसाफ़त के बग़ैर मंज़िल-ए-चश्म सजाने का तकल्लुफ़ किया था इश्क़ इक उम्र सलीक़े से छुपाया था 'नफ़ीस' या'नी इक उम्र तलक कार-ए-तसव्वुफ़ किया था