उन इंतिज़ार के मारे हुओं का दुख समझो हमारा हिज्र विसाले हुओं का दुख समझो समझ में आए तो समझो कभी हमारा दुख फिर उस के बाद हमारे हुओं का दुख समझो पहाड़ दिन को उदासी से काटने वालो सुतून-ए-शब को सँभाले हुओं का दुख समझो उन्हें मैं भूल गया रो लिया जिन्हें जी भर हमारी आँख के धारे हुओं का दुख समझो हमें ख़बर है कोई सुब्ह तक बचेगा नहीं सो हम चराग़ बुझाते हुओं का दुख समझो