उन का अंदाज़-ए-बयाँ और असर तो देखो गुफ़्तुगू का ये सलीक़ा ये हुनर तो देखो ज़ख़्म पर मरहम-ए-उम्मीद रखा है मैं ने देखने वालो मिरा ज़ख़्म-ए-जिगर तो देखो कह रही है मिरे कानों में गुज़रती हुई शाम ये मिरा हौसला ये अज़्म-ए-सफ़र तो देखो आए तो हैं मिरे नज़दीक वो थोड़ा सा मगर उन का बेगाना सा अंदाज़-ए-नज़र तो देखो शब-ए-तारीक भी लाई है उजालों के पयाम छत पे फैली हुई ये उजली सहर तो देखो 'यासमीं' चाँद सितारों से कहा है मैं ने आओ मेरा हसीं भोपाल नगर तो देखो