उन का दीदार मेरी क़िस्मत में इश्क़ तो ख़ुश है इतनी उजरत में मैं ने सब कुछ ही सोच रक्खा है मुझ को डालोगे कैसे हैरत में आइना रोज़ मुस्कुराता है कुछ तो अच्छा है मेरी सूरत में रौशनी ने सिखाई चालाकी कितना मासूम था मैं ज़ुल्मत में जाने वो किस ख़याल में गुम था बात कर बैठा मुझ से ग़फ़्लत में मैं न आया नज़र सवालों को ख़ाक इतनी उड़ाई वहशत में होंट तक भी न तर हुए मेरे बेच दी प्यास मैं ने उजलत में