उन का ग़म भी न रहा पास तो फिर क्या होगा लुट गई दौलत-ए-एहसास तो फिर क्या होगा कौन ता-सुब्ह जलाएगा तमन्ना के चराग़ शाम से टूट गई आस तो फिर क्या होगा जिन की दूरी में वो लज़्ज़त है कि बेताब है दिल आ गए वो जो कहीं पास तो फिर क्या होगा तुम से ज़िंदा है तमन्ना-ए-मज़ाक़-ए-एहसास तुम हुए दुश्मन-ए-एहसास तो फिर क्या होगा दिल ग़म-ए-दोस्त पे मग़रूर बहुत है लेकिन ग़म भी आया न अगर रास तो फिर क्या होगा अपनी मख़मूर निगाहों को न दो इज़्न-ए-ख़िराम बढ़ गई और अगर प्यास तो फिर क्या होगा हम परेशाँ थे परेशाँ हैं परेशाँ होंगे तुम को आई न ख़ुशी रास तो फिर क्या होगा अज़्मत-ए-इश्क़ है ख़ुद्दारी-ए-दिल तक 'शाएर' बुझ गया शो'ला-ए-एहसास तो फिर क्या होगा