उन के दिल पर ग़म-ए-पिन्हाँ का असर क्या होगा जो इधर हाल हुआ है वो उधर क्या होगा सब के सब जल्वा-ए-आग़ाज़-ए-सहर में गुम हैं किस को मालूम है अंजाम-ए-सहर क्या होगा ज़र्रा ज़र्रा पे हो जब ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ का पहरा फूल पर फ़स्ल-ए-बहाराँ का असर क्या होगा राह-ए-दुश्वार भी हो जाए यकायक आसाँ वो अगर साथ हों एहसास-ए-सफ़र क्या होगा तेरे अंदाज़-ए-नज़र ही पे हैं नज़रें सब की देखना है तिरा अंदाज़-ए-नज़र क्या होगा जादा-ए-ग़म के ख़म-ओ-पेच से डरने वालो तुम से दुनिया का कोई मा'रका सर क्या होगा ऐब को वो जो हुनर कहते हैं कहने दे 'ज़मीर' ऐब हर हाल में है ऐब हुनर क्या होगा