वो कभी रौशनी से मिल न सके जो ग़म-ए-तीरगी से मिल न सके आप के दर से उठ के दीवाने फिर कभी ज़िंदगी से मिल न सके जिस की हर साँस में परस्तिश की हम उसी अजनबी से मिल न सके पास-ए-इंसानियत रहा हर दम ये भली ये बुरी से मिल न सके उन का जीना भी कोई जीना है जो कभी आप ही से मिल न सके ज़ब्त-ए-ग़म से रहीं मुलाक़ातें हम ग़म-ए-बरहमी से मिल न सके शिकवा ग़ैरों से क्या करेंगे 'ज़मीर' दोस्त भी दोस्ती से मिल न सके