उन के होंटों पे क्यों हँसी कम है क्या मिरी आँख में नमी कम है मेरे महबूब फिर कोई जल्वा चश्म-ए-बीना में रौशनी कम है हसरत-ए-दीद रह न जाए कहीं आ भी जाओ कि ज़िंदगी कम है क्या किसी ने नक़ाब सरका दी क्यों सितारों में रौशनी कम है नक़्श-ए-पा उन का चूम लेते हैं क्या हमारी ये बंदगी कम है जाने कैसे बहार आई है लाला-ओ-गुल पे ताज़गी कम है क्यों मैं बरसात की दुआ माँगूँ क्या मिरी आँख में नमी कम है शम्अ' की लौ पे रक़्स करते हैं जिन पतंगों की ज़िंदगी कम है बात क्या है कि दिल की बेताबी कल भी कम थी और आज भी कम है मेरे ग़म का है ये असर 'अख़्तर' उन के होंटों पे भी हँसी कम है