उन के हुज़ूर नज़्र-ए-मयस्सर ही ले चलें आँसू नहीं तो ख़ुश्क समुंदर ही ले चलें इख़्लास चाहता है उन्हें अपना हम-सफ़र वो ख़्वाह आस्तीन में ख़ंजर ही ले चलें हम इज़्न-ए-अर्ज़-ए-हाल पे अब कश्मकश में हैं दिल को ये ज़िद है शौक़ का दफ़्तर ही ले चलें गंज-ए-क़फ़स में होगी न ये बज़्म-ए-रंग-ओ-बू मंज़र जो सामने है वो मंज़र ही ले चलें दामन में गुल नहीं तो बरा-ए-सुबूत-ए-सैर सेहन-ए-चमन से ख़ार के नश्तर ही ले चलें सरमाया-ए-'उरूज' हैं ताज़ा ग़ज़ल के फूल बज़्म-ए-सुख़न में शाख़-ए-गुल-ए-तर ही ले चलें