उन के क़िस्से अगर बयाँ होते राज़ सारे तभी अयाँ होते तुम को आते हुनर जो रहज़न के बस तुम्ही मीर-ए-कारवाँ होते बैर हम से सही मगर सोचो हम न होते तो तुम कहाँ होते ज़िंदगी वो जगह दिखा दे अब तुझ को पाते तो हम जहाँ होते उन की महफ़िल में दिल नहीं लगता जब वो औरों में शादमाँ होते ये मुकम्मल अगर जहाँ होता फिर ख़लाओं में क्यूँ जहाँ होते सोच में क़ुर्बतें अगर होतीं फ़ासले यूँ न दरमियाँ होते तुम ही गोशा-नशीन थे 'आदिल' वर्ना चर्चे कहाँ कहाँ होते