दिल में झाँका तो बहुत ज़ख़्म पुराने निकले इक फ़साने से कई और फ़साने निकले ख़्वाब तो ख़्वाब थे आँखों में कहाँ रुक जाते वो दबे पाँव उन्हें भी तो चुराने निकले देखना ये है ठहरता है कहाँ जोश-ए-जुनूँ सर-फिरे शहर-ए-निगाराँ को जलाने निकले अपने घर संग-ए-मलामत की हुई है बारिश बे-गुनाही की सनद हम जो दिखाने निकले कारोबार-ए-रसन-ओ-दार की तशहीर हुई सरफ़रोशी के यहाँ कितने बहाने निकले जिन किताबों पे सलीक़े से जमी वक़्त की गर्द उन किताबों ही में यादों के ख़ज़ाने निकले वो सितम-केश बहर-ए-हाल सितम-केश रहे दर्द सोया भी नहीं था कि जगाने निकले हर तरफ़ शहर में वीरानी का आलम है 'रज़ा' ज़िंदगी कौन कहाँ तुझ को सजाने निकले