उन के पैकान पे पैकान चले आते हैं दिल में घर करने को मेहमान चले आते हैं देख कर आए हैं क्या आरिज़ ओ गेसू उन के लोग हैरान परेशान चले आते हैं चार अंगुल का वो परचा नहीं लिखते मुझ को पास-ए-अग़्यार के फ़रमान चले आते हैं अपनी महफ़िल में मुझे देख के कहता है वो बुत क्यूँ मिरे घर में मुसलमान चले आते हैं बज़्म-ए-अग़्यार में किस शख़्स ने गुस्ताख़ी की कि वो ख़ामोश पशेमान चले आते हैं दोश-ए-अहबाब ये आगे है जनाज़ा मेरा पीछे सर पीटते अरमान चले आते हैं क्या बताएँ कि 'नसीम' आते हैं क्यूँ आप के घर मुफ़्त होने को पशेमान चले आते हैं