उन की आमद से जो अरमान मचल जाते हैं ख़ुद-बख़ुद राह के आसार बदल जाते हैं हम तो उन लोगों में शामिल हैं हमारा क्या है जो उमीदों के सहारे ही बहल जाते हैं मेरी आँखों में तिरे हिज्र के आँसू हैं जमे वो मिरे जज़्बों की हिद्दत से पिघल जाते हैं सुब्ह-ए-सादिक़ की तरह उजले हैं जज़्बे उन के जो बुरे वक़्त में गिर के भी सँभल जाते हैं ऐसा इंसान कि जिस का कोई ग़म-ख़्वार न हो ऐसे इंसान को हालात निगल जाते हैं मेरी आँखों से भला ख़ुश्क हों आँसू कैसे क्या कभी छोड़ के पानी को कँवल जाते हैं