उन की ख़ैर-ओ-ख़बर नहीं मिलती By Ghazal << मुल्ज़िम ठहरी मैं अपनी सच... रास्ता कोई देखता होगा >> उन की ख़ैर-ओ-ख़बर नहीं मिलती हम को ही ख़ास कर नहीं मिलती शाइ'री को नज़र नहीं मिलती मुझ को तू ही अगर नहीं मिलती रूह में दिल में जिस्म में दुनिया ढूँढता हूँ मगर नहीं मिलती लोग कहते हैं रूह बिकती है मैं जिधर हूँ उधर नहीं मिलती Share on: