उन को दुनिया की बहारें मुझ को ज़ंजीरें मिलीं जिस ने जैसे ख़्वाब देखे वैसी ता'बीरें मिलीं अपने ही चेहरों पे गुज़रा अज्नबिय्यत का गुमाँ देखने को जब हमें माज़ी की तस्वीरें मिलीं हर क़दम पर तोहमतें हर साँस में ज़हर-ए-अलम क्या क्या दुनिया में हमें जीने की ताज़ीरें मिलीं वक़्त ने अपनाए क्या क्या ख़ैर-मक़्दम के उसूल फूल जिन हाथों में कल थे आज ज़ंजीरें मिलीं नर्गिसी आँखों का काजल आँसूओं में बह गया फूल से रुख़ पर पिघलते ग़म की तहरीरें मिलीं हम ग़रीब-ए-शहर थे गुमनामियों के दरमियाँ उन की निस्बत से मगर हम को भी तशहीरें मिलीं संग-ओ-तेशा आब-ओ-सुम दश्त-ए-जुनूँ दार-ओ-रसन सिर्फ़ इक लफ़्ज-ए-वफ़ा की कितनी तफ़्सीरें मिलीं आतिश-ए-एहसास-ए-ग़म में उम्र भर जलते रहें हम क़लमकारों को 'तालिब' कैसी तक़दीरें मिलीं