दिल में फिर आरज़ू की ताब खुले तेरे होंटों पे जब गुलाब खिले जब न तुम आए शाम होने तक दर्द चेहरे पे बे-हिसाब खुले मेरा चेहरा था अक्स उस के थे आइनों में अजब सराब खुले तेरी तस्वीर देख ली जब भी दिल में फिर कितने पेच-ओ-ताब खुले जब वो आए हैं सामने 'तालिब' हसरतों के कई गुलाब खिले