उन पे आती ही नहीं होश की तोहमत कोई जिन को होती है तिरे नाम से निस्बत कोई इश्क़ की शक्ल कोई हुस्न की सूरत कोई बाइ'स-ए-लुत्फ़ कोई बाइस-ए-हैरत कोई पैरहन झूट के पहनाओ मगर याद रहे छुप नहीं सकती किसी तरह सदाक़त कोई सिर्फ़ दीवाने समझ सकते हैं राज़-ए-हस्ती कब खुली अक़्ल के मारों पे हक़ीक़त कोई वक़्त उस शख़्स को नाबूद करेगा इक दिन जिस की नज़रों में नहीं वक़्त की क़ीमत कोई मैं ने सीखा ही नहीं होश में आना 'रौशन' इश्क़ हूँ इश्क़ नहीं होश से निस्बत कोई