उन से क्या रस्म-ओ-राह कर बैठे दिल की दुनिया तबाह कर बैठे रुक गया हाथ मेरे क़ातिल का ज़ेर-ए-ख़ंजर जब आह कर बैठे बेवफ़ाई तो उन की थी मालूम फिर भी हम उन की चाह कर बैठे रहमत-ए-हक़ तिरे भरोसे पर हम गुनह पर गुनाह कर बैठे रू-ए-ताबाँ को देख कर तेरे सर को ख़म मेहर-ओ-माह कर बैठे सहन-ए-गुलशन हुआ ख़िज़ाँ-बर-दोश हम क़फ़स में जो आह कर बैठे सारी दुनिया हुई मिरी दुश्मन वो जो मुझ पर निगाह कर बैठे रास आई न ज़ीस्त जब हम को मौत से रस्म-ओ-राह कर बैठे रहम क्या खाएँ वो 'समीअ'' मुझ पर क़ल्ब ही जब सियाह कर बैठे