उन्हीं के काम इलाही मिरा लहू आए रंगें जो हाथ लहू में हिना की बू आए मरीज़ होश में आए न आए तू आए जो तू न आए तिरे गेसुओं की बू आए इताब-ए-यार का इस के सिवा जवाब न था हम आए तो लिए आईना रू-ब-रू आए न पी ज़बान से मेरा भी ज़िक्र कर देना कलीम-ए-तूर पर उन से जो गुफ़्तुगू आए न झूट बोल कि हम शाम से कल आएँगे न खा क़सम अरे झूटी कभी जो तू आए नमाज़ होगी अदा दुख़्त-ए-रज़ के दामन पर हमारी बज़्म में जो आए बा-वज़ू आए तलब किए कभी हम ने अगर पस-ए-तौबा बहुत भरे हुए हम से ख़ुम-ओ-सुबू आए उतरने वाले अभी तक न बाम से उतरे तड़पने वाले तड़प कर फ़लक को छू आए गराँ दिमाग़ वो हैं बू-ए-गुल की तेज़ी से नसीम कह दे ज़रा हल्की हो के बू आए निसार वस्ल की रातें उस एक साअ'त पर हम इंतिज़ार में तेरे हों और तू आए ये जानते हैं कि निकला हुआ है नाम उस का हसीन हश्र में क्यूँ मेरे रू-ब-रू आए खुले जो कोई तो खुल कर किसी से बातें हों उठे हिजाब तो कुछ लुत्फ़-ए-गुफ़्तुगू आए दिलाए याद जो वा'दे तो बोले झुँझला कर ये और हश्र में लेने को आबरू आए कभी की पी हुई काम आए आज हश्र के दिन ख़ुदा के सामने मय-नोश सुर्ख़-रू आए 'रियाज़' थी जो मुक़द्दर में बाज़-गश्त-ए-शबाब जवान होने को पीरी में लखनऊ आए