उन की आँखों में जो नमी सी है बात दिल पर कोई लगी सी है यूँ मिरे घर में क्या नहीं मौजूद एक तेरी ही बस कमी सी है ज़ेहन में है किसी के हुस्न का अक्स दिल के अतराफ़ रौशनी सी है हर-नफ़स है किसी के नाम का दर्द ज़िंदगी जैसे बंदगी सी है हुस्न का बाँकपन अरे तौबा जैसे तलवार इक खिंची सी है क़ुर्ब उन का 'शरर' पयाम-ए-सुकूँ दिल में इक आग भी लगी सी है