उन की ख़्वाहिश और है अपनी तमन्ना और है आँख से ज़ाहिर है कुछ दिल का तक़ाज़ा और है ख़ूब हैं क्या ख़ूब हैं अहल-ए-सियासत वाह वाह दिल में उन के बुग़्ज़ है लेकिन दिखावा और है दस्तरस में अपनी रखता है वो तूफ़ान-ए-हसद हम उभरते हैं तो वो हम को दबाता और है तू कि ग़द्दार-ए-चमन है मैं वफ़ादार-ए-चमन मेरा मक़्सद और है तेरा इरादा और है देखना है तीर लगता है कि होता है ख़ता रुख़ कमाँ का उस तरफ़ लेकिन निशाना और है एहतिरामन हर कोई सर पर बिठाता था हमें वो ज़माना और था अब ये ज़माना और है इस तज़ाद-ए-दिल-नशीं को कुछ समझते हैं हमीं दिल मिलाता और है आँखें दिखाता और है देख सूरत को मिरी हैरत है कहता है 'हबीब' वो तो ऐसा था नहीं ये कोई लगता और है