उन की पैहम नवाज़िशात कहाँ अब वो हंगामा-ए-हयात कहाँ कह दिया तुम को फ़ित्ना-ए-दौराँ देखिए ख़त्म हो ये बात कहाँ उन की नज़रों से पूछना ही पड़ा खो गई है मिरी हयात कहाँ मेरे दिल पर तिरी नज़र न पड़ी वर्ना आईने को सबात कहाँ नक़्श-ए-पा उन का और जबीन-ए-'वसी' बे-ख़ुदी खा गई है मात कहाँ